Feb 25, 2010

मेरी कुछ कविताँए - 2

ये याँद हमे किसकी आने लगी है
लगता है बुरा वक्त आ रहा है

तेरी बेरुखि ने जालिंम
ऎसे ज़ख्म दिये है हमे

लगता है उसमे ही
आराम आने लगा है

तुझे भूला दूँ , ये दिल की आरजुँ तो नही
लेकिन तुझे याँद करके भी, जिंदगी रुसवाँ है

तेरे ज़ख्मों ने, जो आग लगाई है
या खुदां उसमे जिंदगी झुलस गई है

एक रहम तू एसं नाचिजपे कर
मुझे याँद करके कभी तो रोया कर

-सौरभ


Dedicated to P. L. Deshpande alias पुल (पु. ल. देशपांडे)

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